कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि देश में सिर्फ मजदूर ही रहते हैं...
जिधर देखो फेसबुक पर मजदूर मजदूर हुई पड़ी है...कोई केले बाँट रहा कोई खाना कोई चप्पल...
अब मजदूरों का रोना- धोना बंद कर दीजीये....
मजदूर तो घर पहुंच ही जायेगा....
और मजदूर घर पहुँच गया तो....
ये ना सोचो कि काम छूट/छोड़ गया तो घर जाके भूखा मरेगा...वो तो यहाँ भी नहीं मर रहा था.....
घर पहुँच कर भी उसके परिवार के पास मनरेगा का जाॅब कार्ड...राशन कार्ड होगा....
सरकार मुफ्त में चावल व आटा दे ही रही है....जनधन खाते होंगे तो मुफ्त में 2000 रु. भी मिल गए होंगे और आगे भी मिलते रहेंगे...
फिर थोड़ा काम करने की नीयत वाला हुआ तो दस्सी पंजी का काम वहाँ भी ढूँढ ही लेगा...
बहुत हो गया भाई मजदूर-मजदूर अब....
अब मेरी उन लोगों से गुजारिश है....जो सड़कों पर मजबूर,मजलूम,मासूम भूखे मजदूरों की सेवा में लगे थे....कि भाईयों...
जरा उसके बारे में सोचिये...
जो लाखों कि लिमिट बनवा कर हजारों का ब्याज भर कर लाखों का माल उधारी भर कर दुकान बन्द किये बैठा है...
जिसने बन्द दुकान में अपने वर्करों को तन्खवाह भी देनी है और सामाजिक दान और एसे मजलूमों की सेवा का भी दबाव है उस पर...
उस पर जिनको उधार दिया था...वो हाथ खडे़ कर गये लाकडाउन के दौेरान..कि जब होगा दे देंगे...
जिसने लाखों रुपये का कर्ज लेकर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग की थी...और अभी कम्पनी में 5 से 8 हजार की नौकरी पर लगा था (मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी से भी कम) लेकिन मजबूरीवश अमीरों की तरह रहता था....बचत शून्य मल्लब जीरो...मल्लब निल बटे सन्नाटा थी...
उसकी सोचो...जिसने अभी अभी नयी नयी वकालत शुरू की थी...दो -चार साल तक वैसे भी कोई ईंडीपेंडेंट केस नहीं मिलता .....
दो-चार साल के बाद...चार पाँच हजार रुपये महीना मिलना शुरू होता है....लेकिन मजबूरीवश वो भी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं कर पाता....
और चार छ: साल के बाद.. जब थोड़ा कमाई बढ़ती है, दस पंद्रह हजार होती हैं तो भी..लोन वोन लेकर...कार वार खरीदने की मजबूरी आ जाती है....
बड़ा आदमी दिखने की मजबूरी जो होती है...
अब कार की किस्त भी तो भरनी है....
और जरा उसके बारे में भी सोचो....जो सेल्स मैन एरिया मैनेजर का तमगा लिये घूमता था...
बंदे को भले ही आठ हज़ार रुपए महीना मिले, लेकिन कभी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं किया...
उनके बारे में भी सोचिये जो बीमा ऐजेंट...सेल्स एजेंट बने मुस्कुराते थे...आपसे जलालत सहते हुए भी आपके आगे पीछे घूमते थे...क्यूँकि थोडी सी कमीशन से उनका घर चलता था....
क्या हो रहा होगा उनका....कुछ सोचा है...??
आप कार की एजेंसी पहुंचे नहीं कि कार के लोन दिलाने से ले कर कार की डिलीवरी दिलाने तक के लिये मुस्कुराते हुए....साफ सुथरे कपड़े में... आपके सामने हाजिर....
बदले में कोई कुछ हजार रुपये महीना...
लेकिन अपनी गरीबी का रोना नहीं रोते...
आत्म सम्मान के साथ जीवन जीते...
मैंने संघर्ष करते बहुत वकील,इंजीनियर,पत्रकार,ऐजेंट,सेल्समेन,छोटे- मंझोले दुकानदार,क्लर्क,बाबू,स्कूली माटसाब,धोबी,सैलून वाले... देखे हैं …….
अंदर भले ही चड्डी-बनियान फटी हो...मगर अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं करते...
और…और...और...
इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है...न ही जनधन का खाता...यहाँ तक कि ज्यादातर गैस की सब्सिडी भी छोड़ चुके हैं....
ऊपर से मोटर साइकिल या कार की किस्त ब्याज सहित देनी है...
बेटी-बेटे की एक माह की फीस बिना स्कूल भेजे ही इतनी देना है, जितने में दो लोगों का परिवार आराम से एक महीने खा सकता है...
पर गरीबी का प्रदर्शन न करने की उसकी आदत ने उसे सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक से दूर कर दिया है....
ऐसे ही टाईपिस्ट,स्टेनो,रिसेप्सनिस्ट,ऑफिस बॉय जैसे लोगो का वर्ग है....
अब ऐसा वर्ग क्या करे ?
वो तो...फेसबुक पर बैठ कर अपना दर्द भी नहीं लिख सकता है...बड़ा आदमी दिखने की मजबूरी जो है...
मजदूरों को सड़क पर चलता देख कर आपको बहुत दुख होता है....
लेकिन...
क्या आपको हकीकत पता है..???
IAS,IPS,PSC का सपना लेकर रात- रात भर जाग कर पढ़ने वाला छात्रों का बहुत बड़ा वर्ग,दस पंद्रह हजार की नौकरी करने वाले नौकरीपेशा तो बहुत पहले ही दिल्ली व इंदौर से पैदल निकल लिये थे...अपनी पहचान छिपाते हुये...मजदूरों के वेश में....
क्यूंकि वो अपनी गरीबी व मजबूरी की दुकान नहीं सजा सकते थे...
अब जो निकल रहे हैं....वो तो अधिकतर अवसरवादी हैं...
ये वही लोग हैं...गरीबी के नाम पर जिनको सब फ्री है....जो कभी टैक्स नहीं देते...
इन सबको तो
1. कारोना टेस्ट फ्री
2. राशन फ्री
3. दाल फ्री
4. मनरेगा चालू (नई दर के साथ)
5. गैस फ्री
6. बिना काम के मजदूरी/पगार चालू....
लेकिन.....जो वर्ग इस सब का भार वहन करता है...वही मध्यम वर्ग सभी जगह दबता है...
उसे...
1. सरकार को बिलों का भुगतान भी करना है...
2. बच्चो की स्कूल फीस भरनी है....
3. सभी लाइसेंस फीस भरनी है....
4. दुकान, उद्योग पर कर्मचारी को बिना काम तन्ख्वाह देनी है...
5. बिना दुकान खोले, किराया,बिजली बिल देना है...
6. बैंक को पूरा ब्याज दे नहीं दिया तो अतिरिक्त भार झेलना है...
7. सरकार को केयर फण्डों रिलीफ फण्डों के नाम पर दान भी देना है...
8. आसपास के जरूरत मन्द को भोजन राशन भी देना है...
9. सेविंग पर ब्याज कम कर दिया है...
10. धंधा करना है तो सरकार के नियम की पालन करना है...
11. भगवान ना करे...बीमार पड़ गया तो ईलाज भी खुद कराना है....5000/- में होता है कोरोना टैस्ट....
काश.....
कि देश का मध्यम वर्ग ऐसा कर पाता....जैसा ये मजबूर,मजलूम,मासूम लोग कर रहे हैं...
जिसको दे रहे हैं वही सरकारें इस मध्यम वर्ग की बदहाली का आलम नहीं समझ रही.....तो क्या कहें....
इतना ही कहूँगा...
सभी पक्ष, विपक्ष के नेताओं से निवेदन है कि……..
https://bit.ly/2TJzxcy
मध्यम वर्ग के बारे में भी सोचें....जो कभी किसी भी सरकार से कुछ मांगता नहीं....सिर्फ देता ही है....
अभी वो भी बहुत मजबूर हैं...
कहीं एसा ना हो कि वो भी सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाये...
🙏🙏🙏
जिधर देखो फेसबुक पर मजदूर मजदूर हुई पड़ी है...कोई केले बाँट रहा कोई खाना कोई चप्पल...
अब मजदूरों का रोना- धोना बंद कर दीजीये....
मजदूर तो घर पहुंच ही जायेगा....
और मजदूर घर पहुँच गया तो....
ये ना सोचो कि काम छूट/छोड़ गया तो घर जाके भूखा मरेगा...वो तो यहाँ भी नहीं मर रहा था.....
घर पहुँच कर भी उसके परिवार के पास मनरेगा का जाॅब कार्ड...राशन कार्ड होगा....
सरकार मुफ्त में चावल व आटा दे ही रही है....जनधन खाते होंगे तो मुफ्त में 2000 रु. भी मिल गए होंगे और आगे भी मिलते रहेंगे...
फिर थोड़ा काम करने की नीयत वाला हुआ तो दस्सी पंजी का काम वहाँ भी ढूँढ ही लेगा...
बहुत हो गया भाई मजदूर-मजदूर अब....
अब मेरी उन लोगों से गुजारिश है....जो सड़कों पर मजबूर,मजलूम,मासूम भूखे मजदूरों की सेवा में लगे थे....कि भाईयों...
जरा उसके बारे में सोचिये...
जो लाखों कि लिमिट बनवा कर हजारों का ब्याज भर कर लाखों का माल उधारी भर कर दुकान बन्द किये बैठा है...
जिसने बन्द दुकान में अपने वर्करों को तन्खवाह भी देनी है और सामाजिक दान और एसे मजलूमों की सेवा का भी दबाव है उस पर...
उस पर जिनको उधार दिया था...वो हाथ खडे़ कर गये लाकडाउन के दौेरान..कि जब होगा दे देंगे...
जिसने लाखों रुपये का कर्ज लेकर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग की थी...और अभी कम्पनी में 5 से 8 हजार की नौकरी पर लगा था (मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी से भी कम) लेकिन मजबूरीवश अमीरों की तरह रहता था....बचत शून्य मल्लब जीरो...मल्लब निल बटे सन्नाटा थी...
उसकी सोचो...जिसने अभी अभी नयी नयी वकालत शुरू की थी...दो -चार साल तक वैसे भी कोई ईंडीपेंडेंट केस नहीं मिलता .....
दो-चार साल के बाद...चार पाँच हजार रुपये महीना मिलना शुरू होता है....लेकिन मजबूरीवश वो भी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं कर पाता....
और चार छ: साल के बाद.. जब थोड़ा कमाई बढ़ती है, दस पंद्रह हजार होती हैं तो भी..लोन वोन लेकर...कार वार खरीदने की मजबूरी आ जाती है....
बड़ा आदमी दिखने की मजबूरी जो होती है...
अब कार की किस्त भी तो भरनी है....
और जरा उसके बारे में भी सोचो....जो सेल्स मैन एरिया मैनेजर का तमगा लिये घूमता था...
बंदे को भले ही आठ हज़ार रुपए महीना मिले, लेकिन कभी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं किया...
उनके बारे में भी सोचिये जो बीमा ऐजेंट...सेल्स एजेंट बने मुस्कुराते थे...आपसे जलालत सहते हुए भी आपके आगे पीछे घूमते थे...क्यूँकि थोडी सी कमीशन से उनका घर चलता था....
क्या हो रहा होगा उनका....कुछ सोचा है...??
आप कार की एजेंसी पहुंचे नहीं कि कार के लोन दिलाने से ले कर कार की डिलीवरी दिलाने तक के लिये मुस्कुराते हुए....साफ सुथरे कपड़े में... आपके सामने हाजिर....
बदले में कोई कुछ हजार रुपये महीना...
लेकिन अपनी गरीबी का रोना नहीं रोते...
आत्म सम्मान के साथ जीवन जीते...
मैंने संघर्ष करते बहुत वकील,इंजीनियर,पत्रकार,ऐजेंट,सेल्समेन,छोटे- मंझोले दुकानदार,क्लर्क,बाबू,स्कूली माटसाब,धोबी,सैलून वाले... देखे हैं …….
अंदर भले ही चड्डी-बनियान फटी हो...मगर अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं करते...
और…और...और...
इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है...न ही जनधन का खाता...यहाँ तक कि ज्यादातर गैस की सब्सिडी भी छोड़ चुके हैं....
ऊपर से मोटर साइकिल या कार की किस्त ब्याज सहित देनी है...
बेटी-बेटे की एक माह की फीस बिना स्कूल भेजे ही इतनी देना है, जितने में दो लोगों का परिवार आराम से एक महीने खा सकता है...
पर गरीबी का प्रदर्शन न करने की उसकी आदत ने उसे सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक से दूर कर दिया है....
ऐसे ही टाईपिस्ट,स्टेनो,रिसेप्सनिस्ट,ऑफिस बॉय जैसे लोगो का वर्ग है....
अब ऐसा वर्ग क्या करे ?
वो तो...फेसबुक पर बैठ कर अपना दर्द भी नहीं लिख सकता है...बड़ा आदमी दिखने की मजबूरी जो है...
मजदूरों को सड़क पर चलता देख कर आपको बहुत दुख होता है....
लेकिन...
क्या आपको हकीकत पता है..???
IAS,IPS,PSC का सपना लेकर रात- रात भर जाग कर पढ़ने वाला छात्रों का बहुत बड़ा वर्ग,दस पंद्रह हजार की नौकरी करने वाले नौकरीपेशा तो बहुत पहले ही दिल्ली व इंदौर से पैदल निकल लिये थे...अपनी पहचान छिपाते हुये...मजदूरों के वेश में....
क्यूंकि वो अपनी गरीबी व मजबूरी की दुकान नहीं सजा सकते थे...
अब जो निकल रहे हैं....वो तो अधिकतर अवसरवादी हैं...
ये वही लोग हैं...गरीबी के नाम पर जिनको सब फ्री है....जो कभी टैक्स नहीं देते...
इन सबको तो
1. कारोना टेस्ट फ्री
2. राशन फ्री
3. दाल फ्री
4. मनरेगा चालू (नई दर के साथ)
5. गैस फ्री
6. बिना काम के मजदूरी/पगार चालू....
लेकिन.....जो वर्ग इस सब का भार वहन करता है...वही मध्यम वर्ग सभी जगह दबता है...
उसे...
1. सरकार को बिलों का भुगतान भी करना है...
2. बच्चो की स्कूल फीस भरनी है....
3. सभी लाइसेंस फीस भरनी है....
4. दुकान, उद्योग पर कर्मचारी को बिना काम तन्ख्वाह देनी है...
5. बिना दुकान खोले, किराया,बिजली बिल देना है...
6. बैंक को पूरा ब्याज दे नहीं दिया तो अतिरिक्त भार झेलना है...
7. सरकार को केयर फण्डों रिलीफ फण्डों के नाम पर दान भी देना है...
8. आसपास के जरूरत मन्द को भोजन राशन भी देना है...
9. सेविंग पर ब्याज कम कर दिया है...
10. धंधा करना है तो सरकार के नियम की पालन करना है...
11. भगवान ना करे...बीमार पड़ गया तो ईलाज भी खुद कराना है....5000/- में होता है कोरोना टैस्ट....
काश.....
कि देश का मध्यम वर्ग ऐसा कर पाता....जैसा ये मजबूर,मजलूम,मासूम लोग कर रहे हैं...
जिसको दे रहे हैं वही सरकारें इस मध्यम वर्ग की बदहाली का आलम नहीं समझ रही.....तो क्या कहें....
इतना ही कहूँगा...
सभी पक्ष, विपक्ष के नेताओं से निवेदन है कि……..
https://bit.ly/2TJzxcy
मध्यम वर्ग के बारे में भी सोचें....जो कभी किसी भी सरकार से कुछ मांगता नहीं....सिर्फ देता ही है....
अभी वो भी बहुत मजबूर हैं...
कहीं एसा ना हो कि वो भी सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाये...
🙏🙏🙏
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