Wednesday, 24 July 2019

Kitchen

एक छोटी सी वार्ता

"पॉश किचन"

रीमा नेआज किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले।
पुराने डिब्बे.. प्लास्टिक के डिब्बे...पुराने डोंगे,कटोरियां प्याले, थालियां...
सबकुछ काफी पुराना हो चुका था।
सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने मे रख दिये और नये लाये बर्तन करीने से रखकर सजा दिये।
बड़ा ही पॉश लग रहा था अब किचन...
अब ये जूनापुराना सामान भंगारवालेको दे दिया तो समझो हो गया काम...

इतने मे रीमा की कामवाली  राधा आयी।
दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करनेवाली ही थी कि उसकी  नजर कोने मे पडे बर्तनों पर गयी,
"बापरे !!  आज इतने सारे बर्तन घिसने होगे मैडम ?"...
उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हुआ।
रीमा बोली "अरी नही... भंगारवाले को देने है "
राधा ने ये सुना और उसकी आँखे एक आशासे चमक उठी....
"मैडम , ...आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मै ले लूं ?..(राधा की आँखौंके सामने उसका तलहटी मे पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा इकलौता पतीला आ रहा था।)
रीमा बोली "अरी एक क्यों ?
जितना रखा है कोने मे, वो सबकुछ ले जा,उतना ही पसारा कम होगा"
"सब कुछ!!".....सब कुछ ? राधा की आँखे फैली... उसे तो जैसे अलीबाबा की गुफा ही मिली....
उसने अपना काम फटाफट खत्म किया ...
सभी पतीली....डिब्बे ...प्याले सबकुछ थैले मे भर लिया...
और बडे उत्साहसे घर के ओर निकली...
आज जैसे उसे चार पांव लग गये थे ...
घर आते ही उसने  पानी भी न पिया अपना जूना पुराना टूटने के कगार पर आया पतीला ... टेढा मेढा चमचा... सब एक कोने मे जमा किया,
और अभी लाया हुआ खजाना ठीक से जमा दिया ....
आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना पॉश दिख रहा था....

तभी उसकी नजर अपने जूने पुराने बरतनों पर गिरी ... और खुद ही से बुदबुदायी "अब ये जूना सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम"...

तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथोंकी अजुंल कर खडा था ...
"माँ पानी दे"
राधा उसके हाथों की अंजुल मे पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला  नजर आया। राधा ने वो पतीला भर पानी भिखारी को दिया।
पानी पीकर तृप्त हो वह बरतन वापिस करने लगा ....
राधा बोली. ..."फेंक दो कहीं भी"
वो भिखारी बोला "तुम्हे नहीं चाहिये??? मै रख लूँ मेरे पास?"
राधा बोली" रख लो...और ये बाकी बचा भी ले जाओ "
और उसने जो जो भंगार समझा वो उस भिखारी के झोलेमे डाल दिया।
वो भिखारी खुश हो गया...
पानी पीने को पतीला.... किसी ने दिया तो चावल, सब्जी, दाल लेने के लिये अलग अलग छोटे बड़े बर्तन... और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढा मेढा चम्मच भी था....

आज ऊसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी .. .!!!!

"पॉश" इस शब्द की व्याख्या

सुख किसमें माने, ये हर किसीकी परिस्थिति पर अवलंबित होता है ।

हमें हमेशा अपने छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे से तो अच्छी है ।
जबकि हम हमेशा अपनो से बड़ों को देखकर दुखी होते है।

यह हमारे दुःख का सबसे बड़ा कारण है ।

AeroSoft Corp

No comments:

Post a Comment